कुल्लू: ( हिमदर्शन न्यूज़ ); दुनिया बड़ी तेजी से बदली है...बदल रही है। विज्ञान ने उम्मीद से कहीं ज्यादा तरक्की कर ली है। यहां तक कि लोग चांद पर बसने की तैयारी कर रहे हैं, ऐसे में आदिमानव जीवन जैसा जीवन व्यतीत करना हैरान करने वाला है। यह भी उस देश का वाक्या है, जो दुनियाभर में अपने शक्तिशाली होने का दंभ भरता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश कुल्लू , सैंज घाटी के अंतर्गत आने वाले गांवों की।
सड़क और अस्पताल जैसी मूलभूत समस्याओं से परेशान ग्रामीण
बेशक, बदलते समय के साथ इंसान के रहन-सहन की आदतों में काफी परिवर्तन हुआ है, लेकिन सैंज घाटी में रहने वाली लोगो को देखकर यह कतई नहीं कहा जा सकता कि यहाँ कुछ बदला है। इसमें जरा भी संदेह नहीं की यहाँ के लोग अब भी सरकारों की अनदेखी के चलते आदिमानव का सा जीवन जीने को मजबूर है।
ग्रामीण तो कराह रहे, जनता के रहनुमा आराम फरमा रहे..
देश को आजाद हुए 73 साल बीत गए है और इस दौरान देश और प्रदेश में कई सरकारें जनता से विकास के बड़े बड़े बायदे करके आई और गई । लेकिन ये बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि आजादी को इतना समय बीत जाने के बाद भी सैंज घाटी के अंतर्गत ग्राम पंचायत गड़ापरली के अंतर्गत सुगआड शाकटी मरौड व कुटला गांव के लोग अभी भी सड़क जैसी मूलभूत सुविधा से बंचित है। और आलम ये है कि जब भी गांव का कोई बुजुर्ग, बच्चा बीमार पड़ जाता है या किसी गर्भवती महिला को प्रसूति पीड़ा होती है तो उसे गांव वालों द्वारा 30 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई में पालकी या पीठ पर उठा कर सड़क तक पंहुचाना पड़ता है। जिस कारण लोगो को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है।
ग्रामीण तो कराह रहे, जनता के रहनुमा आराम फरमा रहे..!
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार सरकार व विभाग को डिस्पेंसरी खोलने की मांग भी कर चुके है लेकिन अभी तक कोई भी डिस्पेंसरी नही खुली है। भनहि पंचायत प्रतिनिधि प्रधान भाग चंद , उप प्रधान गोपाल, बीडीसी सदस्य जयबन्ति देवी, शेर सिंह, हीरा चंद, डोला राम, लग्न राणा, मोती राणा, तीर्थ राम, धर्म पाल, गोविंद राम, पूर्व प्रधान इन्द्रू राम व अन्य गांव वासियों सरकार व विभाग से मांग है कि जल्द ही सैंज घाटी के दूरदराज के इन गांव में रोड़ व डिस्पेंसरी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया करवाई जाए।
चिंता का विषय है कि आज के अधिकांश मीडिया चैनल भी नेताओं के पीठू बने हुए है वे भी केवल मन्त्रियों के आगे पीछे मंडराते रहतें है, कोई भी प्रदेश के इन दूरदराज क्षेत्रों में आम जनता की समस्याओं की कवरेज करने नही जाता है। वही हाल क्षेत्रीय नेताओं का है वे भी 5 साल में एक बार वोट बटोरने के उद्देश्य से इन दूरदराज के गावों में जाते है और चुनाव जीतने के बाद जनता को बुलाकर केवल शहरों में डेरा डाले रहते है।