कोरोना वायरस : कोरोना वायरस के चलते देवभूमि में पुलिस का रवैया कितना सही ? कितना गलत ? क्या पुलिस का रवैया सरकार की छवि को घातक? क्या घर से निकलने वाला गुनहगार है, या मजबूर है? क्या उन्हें दौड़ा दौड़ा कर डंडे मारना सही है ? पढ़ें विस्तार से ...
शिमला: कोरोना वायरस के संक्रमण पर लगाम लगाने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन तथा देश के कई प्रदेशों में कर्फ्यू लगा हुआ है। इसके बावजूद कुछ हिस्सों में लोग इसका उल्लंघन कर घर से बाहर निकल रहे हैं। पुलिस भी ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। इसके लिए तरह-तरह के तरकीब अपनाए जा रहे हैं। कहीं मुर्गे तो कहीं मेंढक बनाकर डंडा परेड चली हुई है।
कोरोना वायरस के चलते देश में लॉकडाउन के बीच बिना किसी परिवहन सुविधा के लोग भूखे-प्यासे ही पैदल सैकड़ों किलोमीटर दूर का सफर तय कर घर पहुंचने में लगे हुए हैं। जिनमे से 10 प्रतिशत मजबूर मजदूरों को चलते चलते पुलिस सहयोग मिलता है बाकी 90 प्रतिशत को लॉक डाउन व कर्फ्यू के चलते खाना नही बल्कि पुलिस के डंडे खाने पड़ रहे है। बता दें कि प्रदेश व देश मे कर्फ्यू व लॉकडाउन की स्थिति कोरोना वायरस के चलते बनी है न कि दंगों की बजह से घर बंदी हुई है।
अगर देश मे दंगा फ़साद हो रहा होता तो कर्फ्यू के द्वारान बाहर आने वाले दंगाइयों को मारना पीटना, मुर्गा व मेंढक बना कर दौड़ाना वाजिब था। लेकिन प्रदेश व देश मे लॉक डाउन और कर्फ्यू विश्व भर में फैली महामारी से बचाव के लिए लगा हुआ है तो इसमें पुलिस का कार्य मजबूरी में बाहर निकलने वालों की जांचपड़ताल कर उन्हें हरसम्भव सहयोग करना चाहिए।
अधिकाशं लोगों का मानना है कि जब प्रदेश में कोई दंगा नहीं हुआ है जो प्रदेश की पुलिस कर्फ्यू में लोगों को बेरहमी से पीट रही है। कोई घर से खेत तक जा रहा है तो पिट रहा है कोई राशन लेने जा रहा है तो पिट रहा है यहां तक कि अगर कोई सड़क के किनारे गाँव में कुएँ पर अगर कोई पीने का पानी लेने आ रहा है तो पिट रहा है।
लोगों का सरकार पर आरोप है कि जिन लोगों की बजह से सरकार बनती-बगड़ती है बिपति में उन्ही लोगो को सरकार का पुलिस प्रशासन कर्फ्यू में अपनी शक्तियों का प्रयोग कर दौड़ा दौड़ा कर पीटने से समाज मे दहशत का माहौल पैदा कर रहा है जो सीधे तौर से सरकार की छवि को धूमिल कर रहा है।
कर्फ्यू में बाहर निकलने वाले हुड़दंगी नही है ये वे गरीब है जिन्हें दो वक्त का खाना नसीब नही हो रहा है या यूं कहें कि जिन तक प्रशासन खाने की होम डिलीवरी नही करवा/दे पा रहा है। इस नाजुक स्थिति में बाहर निकलने वाले को समझाया भी तो जा सकता है। अगर कोई जानबूझकर करता है तो उन पर डंडा परेड न कटके FIR दर्ज करे, अगर कोई जायज बाहर निकला है तो उसकी सहायता करें। लेकिन इन दिनों ये जो हो रहा है वी सरकार की छवि के लिए घातक है।
गौरतलब है कि इस महामारी के चलते लगे कर्फ्यू में प्रदेश में केवल गरीब मजदूर व मजबूर ही कर्फ्यू तोड़ने पर मजबूर हो रहा है। जैसे ही वह अपनी जरूरतों के लिए या अपने गांव के जाने के लिए बाहर निकला है वैसे ही उस पर उसकी मजबूरी को जाने बगैर पुलिस कर्मी डंडे बरसाने शुरू कर देते है व उसे मुर्गा या मेढ़क बना कर उससे उछल कूद करवाई जाती है। ऐसा भी नही की सारे पुलिस कर्मी एक जैसे है कुछ एक सहायता भी कर रहें है। लेकिन अधिकतर पुलिस कर्मियों की गैरजिम्मेदाराना हरकतों की वीडियो सोशल मीडिया में कोरोना वायरस से ज्यादा वायरल हो रही।
माना अगर कोई नही मान रहा तो उसकी जांचपड़ताल करने के बाद अगर वह नाजायज़ कर्फ्यू तोड़ रहा है तो उसे जेल मे डाल दो, दो चार को जेल में डाल देंगे कि खबर पढ़कर पर आलतू फालतू बाहर निकलने वाले जेल जाने के डर से हो सकता है धारा 144 न तोड़े। इस तरह जानवरो की भांति मार कर आखिर क्या दिखाना चाहती है पुलिस। क्या किसी अधिकारी या अमीर व्यक्ति को पुलिस ने हाथ भी लगाया इन दिनों ? कर्फ्यू के दौरान पास के नाम पर मौज करने वाले कौन है ?
कोरोना वायरस के चलते लगे कर्फ्यू में पुलिस का रवैया लोगों से कितना सही ? कितना गलत ? देखे वीडियो और ध्यान से सुने और बताएं की पुलिस कर्मी क्या बोल रहे है ? कोरोना कर ले ------