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मनोरंजन

हर मोड़ पर रिस्क लेने वाले सुशांत सिंह राजपूत, कैसे हार गए जिंदगी की जंग

June 15, 2020 07:06 AM
सुशांत सिंह राजपूत - फोटो : social media

अगर आप बहुत ही बारीक नजर रखते हों या बेहरतीन यादाश्त तो आप में किसी को शायद 2006 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय दल का डांस परफॉर्मेंस याद हो। ऐश्वर्या राय की प्रस्तुति थी और बैंकग्राउंड में थे बहुत सारे डांसर्स। उनमें से एक डांसर को ऐश्वर्या राय को उठाना था। वो दुबला पतला शर्मिला सा नौजवान था सुशांत सिंह राजपूत। वही सुशांत सिंह राजपूत जो आगे चलकर टीवी का सुपरस्टार बना और हिंदी फिल्मों का हीरो। अब पुलिस ने उनके आत्महत्या करने की बात कही है...दुर्भाग्यवश उन कलाकारों की फेहरिस्त में एक और नाम जुड़ा गया है जो युवा थे, होनहार थे, संघर्ष के बावजूद कामयाब भी थे। लेकिन जिन्होंने बहुत पहले अलविदा कह दिया। सुशांत टीवी से सफलतापूर्वक फ़िल्मों में क़दम रखने वाले चंद एक्टर्स में शुमार थे।

1986 में पटना में जन्मे सुशांत वैसे कहने को तो दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में मकैनिकिल इंजीनियरिंग कर रहे थे लेकिन उनका दिल डांस से होते हुए एक्टिंग में जा टिका था। कोई 10-11 साल पहले की बात है जब सुशांत सिंह राजपूत को लोगों ने पहली बार छोटे पर्दे पर देखा। 'किस देश में है मेरा दिल' नाम का एक सीरियल था। और फिर 2009 में आया टीवी सीरियल पवित्र रिश्ता जिसमें उन्होंने मुंबई की चॉल में रहने वाले मानव देशमुख का रोल किया। यही वो सीरियल था जिसने सुशांत को रातों-रात युवा दिलों की धड़कन बना दिया। पिछले 10 सालों में अगर मैंने दो-तीन सीरियल देखें हैं तो इनमें से एक था पवित्र रिश्ता -वजह थी सुशांत सिंह और अंकिता लोखांडे की एक्टिंग और जोड़ी जो उस वक्त असल में भी रिश्ते में थे। सुशांत की बड़ी खूबी थी रिस्क लेने की उनकी काबिलियत और माद्दा। जब हाथ में कुछ नहीं था तो इंजीनियरिंग छोड़ कर एक्टिंग में कूद गए और मुंबई में नादिरा बब्बर के थिएटर ग्रुप में आ गए।

रिस्क लेने वाले कलाकार थे सुशांत

जब दूसरे ही टीवी सीरियल को अपार सफलता मिली, तो 2011 में पवित्र रिश्ता में मेन रोल को छोड़ उन्होंने एक बार सब को चौंका दिया था।करीब दो साल तक उनका कोई खास अता-पता नहीं था। नए नए सितारों से भरे टीवी और फ़िल्मों की दुनिया में दो साल की गैर मौजूदगी काफी लंबा वक्त होता है। फिर 2013 में आई उनकी पहली हिंदी फिल्म काई पो चे। गुजरात दंगों के बैकग्राउंड में बनी इस फिल्म में ईशांत के किरदार को सुशांत ने बेहतरीन तरीक से निभाया था। और किसी नए कलाकार के लिए ये आसान किरदार नहीं था। रिस्क लेने के अलावा सुशांत की दूसरी खूबी थी विविधता से एक्सपेरिमेंट करना। इसमें वो कभी सफल भी हुए और कई बार असफल भी हुए। महज छह साल के फ़िल्मी करियर में सुशांत पर्दे पर कभी महेंद्र सिंह धोनी हो गए तो कभी ब्योमकेश बख्शी तो कभी शादी के रिश्ते पर सवाल उठाने वाले शुद्ध देसी रोमांस के रघु राम भी।

सुशांत को सबसे ज्या सफलता और वाहवाही शायद मिली फिल्म धोनी- 

सुशांत सिंह राजपूत - फोटो : social media

एन अनटोल्ड स्टोरी के लिए। खुद धोनी ने इस बात की तारीफ की थी कैसे सुशांत ने धोनी का बैटिंग स्टांस, चाल-ढाल को अपना लिया था। खासकर जिस तरह से उन्होंने धोनी के हेलिकॉप्टर शॉट फिल्म में लगाए। फिल्मों से परे असल जिंदगी में भी वो मुद्दों पर स्टांस लेने वाले युवा कलाकार थे जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी। जब संजय लीला भंसाली का करणी सेना लगातार विरोध कर रही थी और हमला कर रही थी, तो सुशांत सिंह राजपूत ने विरोध स्वरूप अपना सरनेम ट्विटर से हटा दिया था और सिर्फ़ सुशांत नाम रख लिया था। ट्रोल्स का जवाब देते हुए उन्होने लिखा था, 'मूर्ख मैंने अपना सरनेम बदला नहीं है। तुम यदि बहादुरी दिखाओगे तो मैं तुमसे 10 गुना ज्यादा राजपूत हूं। मैं कायरतापूर्ण हरकत के खिलाफ हूं।'

थिंकिंग एक्टर

एक्टिंग से परे उनके शौक भी निराले थे। सुशांत को एस्ट्रोटॉमी का बहुत शौक था और लॉकडाउन के दौरान वो इंस्ट्राग्राम पर पोस्ट डालते रहते थे कभी जूपिटर तो कभी मार्स की। फैंस उन्हें एक थिंकिंग एक्टर के तौर पर याद करेंगे जो अपने रोल के लिए बहुत बारीकी से तैयारी करते थे। हालांकि फिल्म चंदा मामा दूर के बन नहीं पाई लेकिन जिसमें सुशांत अंतरिक्ष यात्री का रोल करने वाले थे और इसके लिए वो बाकायदा नासा जाकर तैयारी करने वाले थे। मैंने थिएटर में उनकी आखिरी फ़िल्म देखी थी सोनचिड़िया जो पिछले साल की बेहतरीन फिल्मों में से थी। ये उनके कम्फर्ट जोन के बाहर की फिल्म थी जिसमें वो लाखन नाम के डाकू का रोल करते हैं- डाकुओं की बीच का सबसे दरियादिल और उसूलों वाला डाकू और जमीर वाला भी।

"गैंग से तो भाग लूंगा वकील, अपने आप से कैसे भागूँगा" - सुशांत जब अपने ही गैंगवालों से ये डायलॉग बोलते हैं तो बतौर दर्शक आप उनकी साइड हो लेते हैं। ऐसा नहीं है कि सुशांत सिंह ने हर फिल्म में बेहतरीन काम किया, या उनकी सारी फिल्में हिट रहीं या औसत काम के लिए उनकी आलोचना नहीं हुई। जैसे राब्ता और केदारनाथ। थिएटर में आने वाली उनकी आखिरी फिल्म छिछोरे थी जिसने ठीक-ठाक कमाई की थी जबकि पर्दे पर वे आखिरी बार 2019 में नेटफ्लिक्स पर फिल्म ड्राइव में नजर आए थे।

आत्मविश्वास से लबरेज एक युवा कलाकार

बीबीसी से इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, 'मुझे फिल्में नहीं मिलेंगी तो मैं टीवी करना शुरू कर दूंगा और अगर टीवी नहीं मिलेगा तो थिएटर की तरफ लौट जाऊंगा। थिएटर में मैं 250 रुपए में शो करता था। मैं तब भी खुश था क्योंकि मुझे अभिनय करना पसंद है। ऐसे में असफल होने का मुझे डर नहीं है।' सोचकर हैरत होती है कि आत्मविश्वास से भरा एक नौजवान जिसे असफलता का डर नहीं था, कामयाबी जिसके कदम चूम रही थी, जिसके आगे सारी जिंदगी पड़ी थी, ऐसा क्या हुआ होगा जो उसने जिंदगी से हार मान ली जैसा कि पुलिस का दावा है। हालांकि वो अभी जांच कर रही है।

सुशांत सिंह का पहला सीरियल था किस देश में है मेरा दिल जिसमें उन्हें शुरूआत में मार दिया जाता है। लेकिन छोटे से रोल में ही वो इतने लोकप्रिय हो गए थे कि सीरियल में आखिर में उन्हें एक प्रेत-आत्मा बनाकर सीरियल में वापस लाया गया था। पर वो फैंटसी की दुनिया थी और ये हकीकत जहां सुशांत कभी लौट के नहीं आएंगे। अब सोनचिड़िया का ये डायलॉग याद रहा है जब मनोज बाजपेयी सुशांत से पूछते हैं क्या उन्हें मरने से डर लगा रहा है तो सुशांत यानी लाखन कहता है, 'एक जन्म निकल गया इन बीहड़ों में दद्दा, अब मरने से काहे डरेंगे।'

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