शिमला: मिड-डे मील वर्कर यूनियन ने आज अपनी मांगों को लेकर उपायुक्त कार्यालय के बाहर धरना दिया। सीटू के बैनर तले प्रदर्शन में केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई।आशा वर्कर व मिड डे मील वर्करज़ स्कीम वर्करज़ की अखिल भारतीय संयुक्त समिति के आह्वान पर प्रदर्शन किया। इस दौरान वर्करज़ ने केंद्र व प्रदेश सरकार को चेताया कि अगर आईसीडीएस, मिड डे मील व नेशनल हेल्थ मिशन जैसी परियोजनाओं का निजीकरण किया गया व आंगनबाड़ी, मिड डे मील व आशा वर्करज़ को नियमित कर्मचारी घोषित न किया गया तो देशव्यापी आंदोलन और तेज़ होगा।
सीटू से सम्बंधित आंगनबाड़ी वर्करज़ एवम हेल्परज़ यूनियन की जिला महासचिव हिमी कुमारी ने कहा है कि अखिल भारतीय हड़ताल के आह्वान के तहत हिमाचल प्रदेश में दर्जनों जगह धरने- प्रदर्शन किए गये जिसमें प्रदेशभर में हज़ारों योजनकर्मियों ने भाग लिया है। उन्होंने केंद्र सरकार से वर्ष 2013 में हुए भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार आंगनबाड़ी, मिड डे मील व आशा कर्मियों को नियमित करने की मांग की है। उन्होंने आंगनबाड़ी व आशा कर्मियों को हरियाणा की तर्ज़ पर वेतन और अन्य सुविधाएं देने की मांग की है। उन्होंने मिड डे मील वर्करज़ के लिए हिमाचल प्रदेश का न्यूनतम वेतन 8250 रुपये लागू करने की मांग की है। उन्होंने योजनाकर्मियों के लिए पेंशन, ग्रेच्युटी, मेडिकल व छुट्टियों की सुविधा लागू करने की मांग की है। इन सभी योजनकर्मियों को महीने का 2300 से लेकर 6300 रुपये वेतन दिया जा रहा है जोकि देश व प्रदेश का न्यूनतम वेतन भी नहीं है। यह सरकार शिक्षा के अधिकार के नाम पर पच्चीस बच्चों से नीचे संख्या होने पर हर दो वर्करज़ में से एक की छंटनी कर रही है। उन्होंने मांग की है कि मल्टीपरपज वर्करज़ का काम मिड डे मील कर्मियों से ही करवाया जाए व उनके वेतन में बढ़ोतरी की जाए। उन्होंने मांग की है कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के वर्ष 2019 के निर्णय को तुरन्त लागू करके दस महीने के बजाए बारह महीने का वेतन लागू किया जाए। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के दौरान आशा कर्मियों ने फ्रंटलाइन वॉरियर की तरह कार्य किया है परन्तु उन्हें इन सेवाओं व सामान्य परिस्थितियों में भी उनकी भूमिका की एवज़ में केवल शोषण ही नसीब हुआ है।