साभार : " पाल की चौपाल " Click here
" छप्पर पर फूंस नहीं, डयोढ़ी पर नाच " सोलन भाजपा में अब गिदड़ व शेर को लेकर शुरू हुई जंग, नेताओं के बीच सोशल मीडिया पर चली है जुबानी जंग, पहले जमीन गंवाई अब जिला से पार्टी का आधार गंवाने की तैयारी..
शिमला : छप्पर पर फूंस नहीं, डयोढ़ी पर नाच (दिखावटी ठाटबाट, पर सार कुछ नहीं )" यह कहावत सोलन भाजपा पर बिल्कुल स्टीक बैठती है। केन्द्रीय जोगिन्द्रा सहकारी बैंक के चुनाव में भले भाजपा ने सभी 6 सीटें जीतकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की हो लेकिन इन चुनाव ने पार्टी की एकजुटता की कलई भी खोल दी है। सोलन में तो भाजपा नेताओं के बीच सोशल मीडिया पर जुबानी जंग शुरू हो गई है। एक- दूसरे को गिदड़ और अपने आप को शेर करार दे रहे है।
हैरानी की बात यह है कि प्रदेश भाजपा में जिला सोलन से दो प्रदेश उपाध्यक्ष है लेकिन उनके निर्वाचन क्षेत्र में ही पार्टी का बिखराव की ओर बढ़ना इनकी नेतृत्व व संगठनात्मक क्षमता पर भी सवाल खड़ा कर रहा है। केन्द्रीय जोगिन्द्रा सहकारी बैंक के निदेशक पद चुनाव में सोलन निर्वाचन क्षेत्र के कंडाघाट जोन व अर्की निर्वाचन क्षेत्र के कुनिहार जोन में भाजपा ने भाजपा को ही हराया है क्योंकि दोनों जोन में पहले व दूसरे नम्बर रहे दोनों प्रत्याशी भाजपा के ही रहे।
अर्की से भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष रत्न सिंह पाल व सोलन से भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष पुरुषोत्तम गुलेरिया भी पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अपने लोगों को बैठाने में नाकाम रहे। बैंक के चुनाव में भले ही भाजपा सभी 6 सीटें जीतने में कामयाब रही हो लेकिन कंडाघाट जोन में भाजपा वर्सिज भाजपा के मुकाबले के बाद सोशल मीडिया पर जंग शुरू हो गई है।
प्रदेश भाजपा कार्यकारिणी सदस्य व विस चुनाव में पार्टी के प्रत्याशी रहे डॉ राजेश कश्यप पर अप्रत्यक्ष रूप से हमले किए जा रहे है लेकिन उन्होंने भी सोशल मीडिया पर इसका जवाब अपने ही अंदाज में दिया है।
ऐसा लग रहा है कि जिला कार्यालय की पहले जमीन गंवाने के बाद( जो पार्टी ने अब फिर से 26 लाख में खरीदा। ब्याने के रूप में दिए गए 85 लाख का कुछ पता नही है)अब स्थानीय नेता पार्टी को जिला में मजबूत नही कमजोर करने में लगे हुए है।
सोलन की सीट का असर जिला की अन्य चारों विधानसभा क्षेत्रों पर पड़ता है। नाहन के विधायक डा. राजीव बिंदल जब तक सोलन से लगातार चुनाव जीतते रहे तब तक जिला सोलन में भाजपा मजबूती से आगे बढ़ती रही और वर्ष 2007 में सभी 5 सीटें जीतने में भी कामयाब हो गई लेकिन 2013 में डॉक्टर बिंदल के नाहन जाने के बाद जैसे ही भाजपा ने सोलन सीट हारी वैसे ही जिला सोलन में पार्टी का ग्राफ भी गिरता गया। वर्ष 2013 में भाजपा 3 व वर्ष 2017 में भाजपा के केवल दो सीटें जीतने में कामयाब हुई है। यही हाल रहा तो अगले चुनाव में यह आंकड़ा कुछ और कम हो सकता है।
सोलन में तो पार्टी के नेता एक - दूसरे से स्कोर सैट करने में लगे हुए है। भाजपा की गुटबाजी का असर व्यापार मंडल की राजनीति पर भी देखने को मिला है। नगर परिषद में कांग्रेस रैफरी की भूमिका में है और भाजपा में ही कब्बडी मैच खेला जा रहा है। भाजपा समर्थित पार्षद कांग्रेस पार्षदों के साथ मिलकर अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए और इसे पारित भी किया। यही नहीं नगर निगम को लेकर भी सोलन में भाजपा बंटी हुई है। शहरी नेता जहां नगर निगम के पक्ष है वहीं ग्रामीण नेता इसका विरोध कर रहे है।
सोलन भाजपा का अगले विधानसभा चुनाव तक यही हाल रहा तो पार्टी को 2022 नहीं बल्कि 2027 का ख्याल रखकर रणनीति बनानी होगी।