कांगड़ा के बगलामुखी मंदिर में देशभर से श्रद्धालु आते हैं। माना जाता है कि यहां लोग दूर-दूर हवन करवाने आते हैं, ताकि उनके शत्रुओं का नाश हो सके। हवन के लिए बाकायदा बुकिंग करवानी पड़ती है।
क्योंकि पहले यहां एक ही हवन कुंड था तो आलम यह था कि कई महीने हवन के लिए इंतजार करना पड़ता था लेकिन अब हवन कुंडों की संख्या बड़ा दी गई है। बता दें कि विश्वभर में बगलामुखी माता के दो ही मंदिर हैं। जिनमे कांगड़ा का बगलामुखी मन्दिर विश्वविख्यात है।
इस मंदिर में दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां तक की नेताओं से लेकर अभिनेता भी यहां मां के दर्शनों और शुत्रओं के नाश की कामना लेकर आते हैं यहाँ तक कि देश के राष्ट्रपति तक मां के दरबार में शीश झुकातें है। कांगड़ा में स्थित मां बगलामुखी का ये मंदिर हजारों साल पुराना है।
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि मां बगलामुखी को नो देवियों में 8वां स्थान प्राप्त है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी। ऐसी मान्यता है कि एक राक्षस ने ब्रह्मा जी का से वरदान प्राप्त किया कि उसे जल में कोई मनुष्य या देवता न मार सके।
इसके बाद वह ब्रह्मा जी की पुस्तिका ले कर भाग रहा था तभी ब्रह्मा ने मां भगवती का जाप किया। मां बगलामुखी ने राक्षस का पीछा किया तो राक्षस पानी मे छिप गया। इसके बाद माता ने बगुले का रूप धारण किया और जल के अंदर ही राक्षस का वध कर दिया।
त्रेतायुग में मा बगला मुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता है। त्रेतायुग में रावण ने विश्व पर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की। इसके अलावा भगवान राम ने भी रावण पर विजय प्राप्ति के लिए मां बगलामुखी की आराधना की।
क्योंकि मां को शत्रुनशिनी माना जाता है। पीला रंग मां प्रिय रंग है। मंदिर की हर चीज पीले रंग की है, यहां तक कि प्रसाद भी पीले रंग ही चढ़ाया जाता है।