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धर्म/संस्कृति

भाई दूज : 16 नवंबर 2020 : भाई दूज पूजा व‍िध‍ि, इस अति शुभ मुहूर्त में बहनें लगाएं भाइयों को टीका

November 16, 2020 09:43 AM

भाईदूज का पर्व भाई-बहन के स्नेह, त्याग और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन भाई-बहन अपने प्यारभरे रिश्ते को और प्रगाढ़ करते हैं। हैं। इस दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और उनकी समृद्धि की कामना करती है। भाई दूज, जिसे 'भबीज', 'भाई टीका' और 'भाई फोंटा' के नाम से भी जाना जाता है, एक विशेष त्योहार है जिसे भारत में भाई और बहन के बीच बंधन मनाने के लिए मनाया जाता है। कार्तिक के हिंदू महीने में शुक्ल पक्ष के दूसरे चंद्र दिवस के रूप में मनाया जाता है, भाई दूज रक्षा बंधन के समान है जब एक भाई और बहन एक दूसरे के लिए प्रार्थना करते हैं, लंबे जीवन और उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं।

भाई दूज एक ऐसा त्योहार है जो एक भाई और बहन के बीच के बंधन का जश्न मनाता है। इस त्यौहार को भाबीज, भाई फोंटा, भाई टीका के नाम से भी जाना जाता है। यह दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। इस दिन, भाई-बहन पल को मनाते हैं और एक साथ उपवास का आनंद लेते हैं। और इस भाई दूज त्यौहार के साथ, पांच दिवसीय दिवाली उत्सव समाप्त हो जाता है, भैया दूज कार्तिक महीने की द्वितीया तिथि, शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है। 

भाई दूज 2020 तिथि और समय

पांच दिनों तक चलने वाले महापर्व दिवाली के आखिरी दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। 16 नवंबर को भाई दूज का पर्व है। इसमें बहनें अपने भाई के माथे पर टीका लगाकर लंबी आयु का कामना करती हैं। भाईदूज का शुभ मुहूर्त 9 बजकर 26 मिनट से आरंभ होकर 10 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। इसके बाद चंचल में 13.34 से 14.57 तक। फिर लाभ व अमृत में 14.57 से 17.42 तक का समय शुभ रहेगा। शाम 17.42 से 19.20 तक रहेगा। 

भाई दूज 2020 शुभ मुहूर्त:

भाई दूज 2020 के लिए शुभ मुहूर्त 16 नवंबर को दोपहर 1.10 बजे से शुरू होगा और इसी दिन 3.00 बजे तक जारी रहेगा।

ऐसे सजाएं भाई दूज की थाली 

भाई दूज पर भाई की आरती उतारते वक्त बहन की थाली में सिंदूर, फूल, चावल के दाने, सुपारी, पान का पत्ता, चांदी का सिक्का, नारियल, फूल माला, मिठाई, कलावा, दूब घास और केला जरूर होना चाहिए। इन सभी चीजों के बिना भाई दूज का त्योहार अधूरा माना जाता है। 

भाई दूज की पूजन विधि

इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर भाई को घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करें। सुबह जल्दी उठें, नहाएं और इसके बाद नए या नए कपड़े पहनें जिससे पूजा की व्यवस्था हो। शुभ मुहूर्त में अनुष्ठान करना चाहिए। पूजा की शुरुआत भगवान गणेश का आह्वान करने से करनी चाहिए और उनका आशीर्वाद लेकर देवताओं से प्रार्थना करने के बाद अपने भाई को उत्तर-पश्चिम की ओर मुंह करके दूसरी चौकी पर बैठाना चाहिए। अब, अपने भाई को रूमाल से अपना सिर ढँक दें। अब अपने भाई के माथे पर टीका लगाएं और उन्हें नारियल दें। फिर आरती करें, अक्षत को अपने सिर पर रखें, और उन्हें मिठाई खिलाकर अनुष्ठान का समापन करें। भाई को अपने साथ बैठाकर तिलक करें। इसके साथ भाई की लंबी आयु, आरोग्य और सुखी जीवन की कामना करें। भाई की आरती उतारें और भोजन करवाएं।

भाई दूज मंत्र:

गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को।सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई आप बढ़ें, फूले-फलें।। 

भाई दूज तिलक विधि

भाईदूज के विधि-विधान के अनुसार सबसे पहले एक पाट बिछाकर उसके ऊपर चावल के घोल से पांच शंक्वाकार आकृति बनाएं। आकृतियों के बीचोबीच सिंदूर लगा दें। पाट के आग स्वच्छ जल से भरा हुआ कलश , 6 कुम्हरे के फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलायची, छोटी इलाइची, हर्रे, जायफल इत्यादि रखें। कुम्हरे के फूल के स्थान पर गेंदे का फूल प्रयोग में लाया जा सकता है। बहन भाई को आदरपूर्वक पाट पर बिठाती है। भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगाती है।

उसके बाद भाई के हाथ में शहद, गाय का घी और चंदन लगाती है। भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कुम्हरे या गेंदे का फूल, जायफल इत्यादि देकर कहती है - "यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को; जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु।" यह कहकर अंजलि में सारी सामग्री डाल देती है। इस तरह इसका तीन बार उच्चारण करती है, अब भाई के जल से हाथ-पैर धो देती है और कपड़े से पोंछ देती है। बहन भाई का तिलक करती है। भुना हुआ मखाना खिलाती है। भाई बहन को उपहार देता है। अब बहन घर आए भाई को भोजन करवाती है।

भाई दूज के इतने नाम

भाई दूज के कई क्षेत्रीय नाम हैं। उत्तर भारत में, इसे आमतौर पर 'भैया दूज' के रूप में जाना जाता है और दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। नेपाल में, इसे 'भाई टीका' कहा जाता है, जबकि इसे पश्चिम बंगाल में 'भाई फोंटा' के नाम से जाना जाता है। दक्षिण में, जहां इसे 'यम द्वितीया' के रूप में मनाया जाता है, इसे 'भाई बीज', 'भतरु द्वितीया', 'भृत्य दैत्य' या 'भोगिनी हस्त भोजमुम' के नाम से भी जाना जाता है।

भाई दूज का इतिहास और महत्व

ऐसा माना जाता है कि इस खास दिन पर हिंदू धर्म में मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने आए। यमुना ने कई बार यमराज को बुलाया था लेकिन वह उन्हें दर्शन देने में असमर्थ थे। हालांकि, एक बार जब यमराज ने यमुना के घर का दौरा किया, तो उनका बहुत प्यार और सम्मान के साथ स्वागत किया गया। यमुना ने अपने माथे पर तिलक भी लगाया। इतना प्यार पाने के बाद यमराज ने यमुना से वरदान मांगने को कहा। उसकी बहन ने यमराज को हर साल एक दिन चिह्नित करने के लिए कहा जहां वह उसे देखने जाएंगे। इस प्रकार, हम भाई दूज को भाई और बहन के बीच के बंधन को मनाने के लिए मनाते हैं।

यह है भाईदूज की कथा

भाईदूज की शास्त्रोक्त कथा का वर्णन वैदिक ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि इस दिन बहन यमुना ने अपने भाई यम से वर मांगा था कि जो भाई इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद अपनी बहन के घर भोजन करेगा उसको मृत्यु का भय नही रहेगा। भगवान सूर्य देव की पत्नी का नाम छाया था। यमराज और यमुना उनके पुत्र और पुत्री थे। यमुना हमेशा अपने भाई यमराज को अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करती थी, लेकिन व्यस्तता का हवाला देते हुए यमराज हमेशा उनके निवेदन को विनम्रतापूर्वक टाल देते थे। एक दिन देवी यमुना ने भाई यम को भोजन के लिए राजी कर लिया।

बहन यमुना के आमंत्रण पर भाई यम ने सोचा कि मैं लोगों के प्राण लेने वाला हूं इसलिए मुझे कोई भी अपने घर आमंत्रित नहीं करता है। मेरी बहन मुझे बड़े आदरभाव से आमंत्रित कर रही हैं इसलिए मुझे बहन के घर भोजन करने के लिए जाना चाहिए। यमराज ने बहन यमुना के घर रवाना होने से पहले उन्होंने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। जैसे ही यमराज बहन यमुना के घर पहुंचे यमुना बहुत खुश हुई। यमुना ने स्नान कर भाई यमराज को भोजन परोसा। बहन यमुना के आदर-सत्कार और स्नेह से प्रसन्न होकर यमदेव ने उससे वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा कि इस दिन जो बहन अपने भाई को अपने घर पर भोजन करवाए और सत्कार करे, उसको आपका भय ना रहे। यमराज ने तथास्तु कहा। इस तरह उस दिन से भाईदूज के पर्व की शुरूआत हुई।

भाईदूज की पौराणिक मान्यता

शास्त्रोक्त मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को बहन यमुना ने अपने भाई यमदेव को घर पर आमंत्रित किया था और सत्कारपूर्वक भोजन करवाया था। इस आयोजन से नारकीय जीवन जी रहे जीवों को यातना से छुटकारा मिला था और वे तृप्त हो गए थे। पाप मुक्त होने के साथ ही वह सभी सांसारिक बंधनों से भी मुक्त हो गए थे| उन सभी जीवों ने मिलकर एक महोत्सव का आयोजन किया, जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इस कारण यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध हुई।

भाईदूज को बहन यमुना ने भाई यम को अपने घर पर भोजन करवाया था। इसलिए मान्यता है कि इस दिन यदि भाई अपनी बहन के हाथों से बना भोजन ग्रहण करे तो उसको स्वादिष्ट और उत्तम भोजन के साथ धन-धान्य की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को यम पूजा करके यमुना स्नान करने से मानव को यमलोक की नारकीय यातनाएं नहीं भोगना पड़ती है और उसको मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

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