शिमला: हिमाचल के मंडी जिला की लड़भडोल तहसील के सिमस गांव में एक देवी का मंदिर ऐसा है जहां पर निसंतान महिलाओं के फर्श पर सोने से संतान की प्राप्ति होती है। नवरात्रों में हिमाचल के पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ से ऐसी सैकड़ों महिलाएं इस मंदिर की ओर रूख करती हैं जिनकी संतान नहीं होती है।
बताया जाता है कि इस गांव में टोभा सिंह नामक व्यक्ति रहता था। महाशिवरात्रि वाले दिन वह तरड़ी (कंदमूल) खोदने के लिए अपने घर से करीब 3 किलोमीटर दूर नागण नामक स्थान पर गया। उसकी पहली चोट जमीन पर मारने से दूध बाहर निकल आया। यह देखकर वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसने सोचा कि तरड़ी (कंदमूल)अच्छी है और अधिक मात्रा में निकलेगी। जब उसने दूसरी चोट मारी तो जमीन से पानी की धारा निकलने लगी और तीसरी चोट मारने पर जमीन से खून निकलने लग पड़ा, जिससे वह घबराया हुआ घर वापस आ गया।
माता ने रात को स्वप्न में आकर दिए दर्शन : रात को उसे स्वप्न में माता ने दर्शन दिए और कहा कि जिस बात से तू घबराया है, में उसी को हल करने आई हूं। तू प्रात: नहाकर जहां खुदाई कर रहा था वहीं पर जाना। वहां पर खुदाई करने से तुझे एक मूर्ति मिलेगी। उस मूर्ति को पालकी में सजाकर धूमधाम से लाना और जहां पर वह मूर्ति भारी लगने लगे वहीं पर उसकी स्थापना कर मंदिर बनवाना।
प्रात: उठते ही यह किस्सा उसने अपने भाइयों को सुनाया। मां के आदेशानुसार दोबारा खुदाई करने पर उन्हें देवी की मूर्ति मिली, जिसकी लंबाई 7 वर्ष की कन्या के बराबर थी। यह मूर्ति आज भी मंदिर में मौजूद है। खुदाई के समय की 3 चोटें आज भी देखी जा सकती हैं।
स्वप्न में संतानरूपी वरदान बांटती हैं सिमसा माता : मान्यता के अनुसार जिन भक्तों के यहां संतान नहीं होती है, वे नवरात्र में माता सिमसा के दर्शनों के लिए आते हैं। स्त्रियां जिन्हें संतान की चाह होती है, वे मंदिर के प्रांगण में अपना बिछौना बिछाकर सो जाती हैं। यह मां का चमत्कार है कि जब औरतें सो रही होती हैं तो नींद में मां सिमसा पूरे शृंगार में उन्हें दर्शन देकर आज्ञा अनुसार स्वप्न में फल बांटती हैं। जिस स्त्री को जैसा फल मिलता है, उसे वैसी ही संतान प्राप्त होती है। मान्यता के अनुसार एक बार सपना होने के बाद जो महिला फिर से सपने के लिए अपना बिछौना बिछाकर सो जाती है, उसे कुछ ही देर बाद चींटियों के काटने जैसा अहसास होने लगता है। यही नही, उसके शरीर पर लाल रंग के दाग भी उभरने लगते हैं।
धूमधाम से मनाया जाते है चैत्र व शरद नवरात्र: यहां हर वर्ष चैत्र व शरद नवरात्र के दौरान मेले लगते हैं और मेला कमेटी व युवक मंडल सिमस की ओर से भंडारे लगाए जाते हैं। इस साल भी यहां चैत्र नवरात्र महोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
कैसे पहुंचे सिमसा माता : अगर आप हिमाचल प्रदेश से बाहर किसी दूसरे राज्य के निवासी है तो हम आपको बता दे आपको सिमसा माता मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है। इसलिए आपको भारत के किसी भी हिस्से से आना है तो आप रेल द्वारा सबसे पहले पठानकोट (पंजाब) स्टेशन पर पहुंचिए उसके बाद वहां से आपको बस द्वारा हिमाचल के बैजनाथ आना होगा। पठानकोट से आसानी से आपको बैजनाथ के लिए बस मिल जाएगी।
पठानकोट से बैजनाथ की दूरी लगभग 130 किलोमीटर है और सुबह 4 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक आपको हर आधे घंटे बाद पठानकोट से बैजनाथ के लिए बसें मिलेगी। बैजनाथ पहुँचने के बाद आपको सिमसा माता मंदिर के लिए लोकल बस या टैक्सी मिल जाएगी।
बैजनाथ से सिमसा माता मंदिर की कुल दूरी लगभग 32 किलोमीटर है। इस रूट को कुछ इस तरह समझिये : पहले भारत के किसी भी हिस्से से रेल द्वारा पठानकोट >> फिर पठानकोट से बस द्वारा बैजनाथ >> फिर बैजनाथ से बस बदलकर लोकल बस या टैक्सी द्वारा सिमसा माता मंदिर पहुंचिए।
बस द्वारा : अगर आप बस द्वारा दिल्ली और चंडीगढ़ से आना चाहते है तो दिल्ली के महाराणा प्रताप बस अड्डे से आपको बैजनाथ के लिए बस पकड़नी होगी। दिल्ली से बैजनाथ से कुल दूरी लगभग 550 किलोमीटर है| बस यह दूरी पूरी करने में लगभग 13 घण्टे लगाती है। फिर बैजनाथ पहुंचकर आपको सिमसा माता के लिए लोकल बसें मिल जाएगी। सिमसा माता मंदिर बैजनाथ से लगभग 32 किलोमीटर दूर स्थित है। ऐसे में चंडीगढ़ से आने के लिए आपको सेक्टर 43 के काउंटर नंबर 16 से बैजनाथ के लिए बस पकड़नी होगी। चंडीगढ़ से बैजनाथ की दूरी लगभग 350 किलोमीटर है।
मंदिर में लग सकते है इतने दिन : माता के दरबार में आने वाली महिलाओं को मंदिर के फर्श पर सोना होता है। मान्यता के अनुसार सोने के दौरान महिला को माता सपने में आकर फल देती है। इसलिए महिला को मंदिर में रहने के लिए कोई निर्धारित समय नहीं होता बल्कि जब तक माता सपने में आकर फल नहीं दे देती तब तक महिला को मंदिर में रहना होता है। महिला के सौभाग्य होने पर पहले नवरात्रे में ही सपने में माता के दर्शन हो जाते है। तो वह महिला उसी दिन पूजा करने के बाद अपने घर लौट सकती है। सपने में माता के दर्शन नहीं होने पर महिलाओं को सातवें या आठवें नवरात्रे तक भी इंतज़ार करना पड़ सकता है।