कांगड़ा : (हिमदर्शन समाचार); माता ज्वाला के नाम से विश्व विख्यात स्थान ज्वाला जी हिमाचल प्रदेश के शिमला धर्मशाला रास्ते पर पड़ता है। वहां मंदिर के अंदर पहाड़ की चट्टान से विभिन्न स्थानों से ज्योतियां बिना दीए-बाती के स्वयं प्रज्ज्वलित रहती हैं। इसीलिए इसे ज्वाला माता के नाम से पुकारा जाता है। इस स्थान पर यूं तो श्रद्धालु जन नित्य ही चमत्कारी ज्योतियों के दर्शनार्थ आते हैं मगर हर वर्ष आश्विन मास के नवरात्रों में भारी भीड़ रहती है तथा अष्टमी के दिन श्रद्धालुओं की उपस्थिति पूर्ण चरम पर होती है।
अलौकिक ज्योतियां : ज्वाला जी की अलौकिक ज्योतियां कभी कम या ज्यादा भी रहती हैं जो अधिक से अधिक 14 तथा कम से कम 3 होती हैं जिनका तात्पर्य यह माना जाता है कि यह चतुर्दश दुर्गा चौदह भुवनों की रचना करने वाली हैं जिसमें सत्व, रज व तम तीनों गुण पाए जाते हैं अर्थात ये ज्योतियां मिल कर ही इस संसार का निर्माण करती हैं।
नव ज्योतियां अलग-अलग सुख प्रदान करने वाली हैं जैसे कि चांदी के जाले में सुशोभित पहली मुख्य ज्योति का पावन नाम महाकाली है जो मुक्ति-भक्ति देने वाली हैं। इसके नीचे दूसरी ज्योति भंडार भरने वाली महामाया अन्नपूर्णा की हैं। दूसरी ओर शत्रुओं का दमन करने वाली चंडी माता की ज्योति हैैं। चौथी ज्योति हिंगलाज भवानी की है जो समस्त व्याधियों का नाश करने वाली हैं।
पांचवीं ज्योति शोक से छुटकारा देने वाली विंध्यवासिनी की हैं, छठी ज्योति धन-धान्य देने वाली महालक्ष्मी की और सातवीं ज्योति भी कुंड में ही विराजमान विद्या दात्री सरस्वती की हैं जबकि आठवीं ज्योति संतान सुख देने वाली अंबिका तथा आयु व सुख प्रदान करने वाली परम-पावन नवम अंजना ज्योति भी यहीं विराजमान हैं।श्रद्धालु जन इन सबके दर्शन व पूजा करते हैं।
इतिहास : इस पावन स्थान का इतिहास काफी पुराना है और इस संबंधी अनेकों प्रसंग प्रचलित हैं। मगर इस स्थान के विख्यात होने संबंधी मुख्यत: इसका 51 शक्ति पीठों में से एक होना है जिसके अनुसार इस स्थान पर सती की जिव्हा गिरी थी और ज्वालाएं प्रकट हुईं और यह स्थान ज्वाला माता के नाम से विख्यात हुआ।
बिना तेल-बाती के जलती हैं अखंड ज्योतियां, अकबर हुआ था नतमस्तक..
ज्वाला माता की शक्ति संबंधी चमत्कारी प्रसंग जो बड़ा ही रोचक तथा सच कहा जाता है वह प्रसंग है माता के प्रिय भक्त ध्यानू का, जिसके मुताबिक भक्त ध्यानू हर वर्ष माता की पूजा करने यहां आया करता था। एक बार रास्ते में उसे अकबर बादशाह मिला और उसने पूछा तो भक्त ध्यानू ने कहा माता ज्वाला के दर्शन करने जा रहा हूं। अकबर ने कहा क्यों तो ध्यानू ने कहा वहां सबकी मुरादें पूर्ण होती हैं। अखंड ज्योतियां बिना तेल-बाती के जलती हैं।
अकबर ने कहा यह सब झूूठ है, मैं चल कर देखता हूं। वहां जाकर ज्योतियां देखकर कहा इन्हें तो मैं अभी बुझा देता हूं और लोहे के तवे से उन्हें ढंकने का आदेश दिया मगर ज्योतियां लोहे का तवा फाड़ कर बाहर आ गईं तो अकबर ने ऊपर से नहर चलाने का आदेश दिया। चारों ओर पानी बहने लगा, मगर ज्योतियां जलती रहीं तथा रोशनी और भी तेज हो गई।
ध्यानू ने कहा कि माता तो मुर्दे भी जिंदा कर देती है तो बादशाह एक बार फिर क्रोध से भर गया तथा ध्यानू के घोड़े का शीश काट डाला और कहा कि इसे तेरी माता से जिंदा करवा तो मैं भी शक्ति को मान जाऊंगा या फिर तेरा भी शीश घोड़े की तरह काट दूंगा।
ध्यानू ने माता की स्तुति की और रात भर जागरण करके कहा कि यदि घोड़ा जिंदा न हुआ तो मैं माता तेरे चरणों में मर जाऊंगा और वह अपनी ही तलवार से अपना शीश काट कर ज्योति के आगे रखने लगा तो ज्वाला माता ने प्रकट होकर ध्यानू का सिर धड़ से मिला दिया और घोड़ा भी जिंदा कर दिया। अकबर का शीश झुका, श्रद्धा उत्पन्न हुई।
सवा मन सोने का छत्र : अकबर सवा मन सोने का छत्र लेकर माता के चरणों में आया मगर उसके मन में अहंकार हो गया कि माता एक मैं ही तेरे चरणों में शाही भक्त आया हूं जो सवा मन सोने का छत्र लाया हूं। न ऐसा पहले कोई आया होगा न आगे आएगा। अहंकार में डूबा अकबर ज्यों ही मंदिर में दाखिल हुआ तो अकबर के कंधे पर रखा हुआ छत्र एक ओर जा गिरा तथा अष्टधातु का हो गया।
एक बार उसने फिर क्षमा मांगी तो आवाज आई कि तेरे गुनाह तभी क्षमा होंगे जब तू आगे से किसी भक्त की परीक्षा न लेने का प्रण लेगा। अकबर ने परीक्षा न लेने का प्रण लेते हुए क्षमा मांगी, तो माता ने साक्षात दर्शन दिए। आज भी यह अष्ट धातु का बना छत्र मंदिर के एक ओर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा हुआ है।
24 अवतारों के दर्शन : भक्तजन यहां भवन, गोरख टिबी, वीर कुंड, 24 अवतारों की मूर्तियां, राधा कृष्ण मंदिर, शिव शक्ति लाल शिवालय, काल भैरो मंदिर, सिद्धि नागार्जुन, सीता राम मंदिर, कपिल स्थल, तारा देवी मंदिर तथा बहुत से अन्य मंदिरों के भी दर्शन करते हैं।