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धर्म/संस्कृति

माँ वैष्णो देवी : जानें क्या है माता वैष्णो देवी की कथा, कैसे मां का भवन बना लाखों भक्तों की उम्मीद

December 29, 2021 09:52 AM

वैष्णो देवी मंदिर प्रमुख हिंदू मंदिरों में से एक है। मां दुर्गा को मानने वाले भक्त दुनियाभर से यहां आते हैं। जम्मू के कटरा नगर में स्थित इस मंदिर की हिंदू ग्रंथों के अनुसार बहुत महत्वता है। त्रिकूटा पहाड़ी पर स्थित माता वैष्णो देवी के भवन के अनेक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से प्रमुख कथा के अनुसार असुर भैरव नाथ देवी वैष्णो को मारने के लिए उनका पीछा करता है और माता अपने बचाव के लिए त्रिकूटा पर जाती हैं। वहां अपनी प्यास बुझाने के लिए बाण से वार करती हैं तो बाणगंगा का उद्गम होता है। गर्भ जून में भैरव से बचने के लिए नौ महीनों तक छुपी रहती हैं। मुख्य मंदिर के स्थान पर मां ने भैरव का सिर धड़ से अलग किया था। ये रही मां वैष्णो देवी जी की संक्षिप्त कथा :-

माता वैष्णो देवी कथा

ॐ सहस्त्र शीर्षाः पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्र-पातस-भूमिग्वं सव्वेत-स्तपुत्वा यतिष्ठ दर्शागुलाम्। आगच्छ वैष्णो देवी स्थाने-चात्र स्थिरो भव।।

श्रीधर मां दुर्गा का परम भक्त था, वह बहुत ही गरीब व्यक्ति था। एक बार श्रीधर को स्वपन में मां दुर्गा के दर्शन हुए श्रीधर मां दुर्गा के उस स्वपन को देखकर इतना प्रभावित हुआ कि उसने मां दुर्गा का भंडारा करने का निर्णय किया, परंतु गरीब होने के कारण वह आस-पड़ोस के लोगों को भंडारा कराने में असमर्थ था।

एक दिन श्रीधर ने शुभ मुहूर्त देखकर देविका भंडारा करने का निर्णय किया और आस पड़ोस के गांव वालों को निमंत्रण दे आया जैसे-जैसे दिन पीटने लगे वह भिक्षा मांगने जाता और भंडारे के लिए सामान इकट्ठा करने लगा परंतु जितने भोजन की आवश्यकता थी उतना राशन एकत्रित करने में असमर्थ रहा।

इसी तरह दिन बीते और भंडारे का दिन आ गया, श्रीधर उस दिन सो भी नहीं पाया और देवी के सामने आंखें बंद करके यह सोचने लगा कि अब मैं सब को भोजन कैसे कराऊंगा।

भक्त श्रीधर माता दुर्गा से विनती करने लगा की हे मां मेरी मदद करें, इसी दौरान गांव के कुछ लोग भंडारे के लिए आने लगे और जैसे-जैसे सब उसके झोपड़ी में बैठने लगे श्रीधर की चिंता भी बढ़ने लगी परंतु कुछ समय पश्चात उसे आश्चर्य हुआ कि कि इतनी छोटी झोपड़ी में इतने लोग बैठे हैं है फिर भी झोपड़ी में बैठने के लिए काफी जगह बची है और भंडार ग्रह में देखने पर उसे पता चला सारे बर्तन भोजन से भरे हुए हैं और भोजन बर्तनों में अपने आप भर रहा है।

इस आश्चर्यजनक घटना को देखकर सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए तब भक्त श्रीधर ने देखा उसकी झोपड़ी में एक छोटी कन्या सब को भोजन करा रही है उसे यह जानते समय नहीं लगा कि वह कन्या कोई और नहीं स्वयं जगत जननी मां दुर्गा है।

जब इस घटना की सूचना आज पड़ोस के लोगों को लगी तो भैरवनाथ नामक एक साधु को शक हुआ कि यह कोई दिव्य कन्या है, उस कन्या के बारे में जानने के लिए वह साधु कन्या का पीछा करने लगा।

भैरवनाथ को देख देवी तेजी से भागने लगी, भैरवनाथ भी उनका पीछा करने लगा। तब देवी कन्या रूप में वायु रूप में बदलकर त्रिकुटा पर्वत की ओर उड़ चली।

ऐसी मान्यता भी है की जब देवी भैरवनाथ से बचकर जा रहे थे तो भगवान हनुमान उनकी रक्षा के लिए भैरवनाथ से लड़ने लगे तभी पवन पुत्र हनुमान को प्यास लगी तो माता से आग्रह करने पर माता ने धनुष द्वारा पहाड़ पर बाण चलाकर जल प्रकट किया और उसी जल में अपने केस धोए।

जब देवी भागते भागते थक गई तो एक स्थान पर रुक कर पीछे मुड़कर भैरवनाथ को देखने लगी उसी स्थान पर मां दुर्गा की चरणो के निशान बन गए, इस स्थान को चरण पादुका नाम से पूजा जाता है।

कन्या रूपी माता ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की परंतु जब वह नहीं माना तो माता उससे बचने के लिए उसी पर्वत की गुफा में जाकर छिप गई, इस गुफा में देवी दुर्गा 9 महीने तक छुपी रहि।

इस गुफा के बाहर हनुमान जी ने 9 महीने तक पहरा दिया और देवी की रक्षा की। जब भैरवनाथ ने कन्या का का पीछा नहीं छोड़ा तो एक साधु वहां से गुजर रहे थे उन्होंने भी भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की कि जिसे तुम कन्या समझ रहे हो वह जगत माता देवी दुर्गा है। परंतु भैरवनाथ ने उनकी बात नहीं मानी और उसी को पा के बाहर 9 महीने तक खड़ा रहा।

कहा जाता है कि देवी दुर्गा उस गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर निकल गई, तभी से इस गुफा को अर्द्धकुमारी या आदि कुमारी और गर्भ जून नाम से जाना जाने लगा।

जब मां दुर्गा गुफा से बाहर नहीं निकली तो भैरव नाथ गुफा में घुसने की कोशिश करने लगा, यह देख पहरा दे रहे हनुमान क्रोधित हो गए और भैरवनाथ को युद्ध के लिए ललकारा। हनुमान और भैरव नाथ का युद्ध बहुत समय तक चला युद्ध का कोई अंत नहीं होते देख माता दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण कर भैरवनाथ का सर धड़ से अलग कर दिया। यह भी कहा जाता है, वध के बाद भैरवनाथ को अपनी मूर्खता पर पछतावा हुआ और मां दुर्गा से क्षमा याचना करने लगा।

माता वैष्णो को भैरवनाथ पर दया आ जाती है इसलिए उन्होंने भैरवनाथ को क्षमा कर दिया और उन्हें पूर्व जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की इसके साथ ही भैरवनाथ को वरदान दिया कि मेरा जो भी भक्त मेरे दर्शन के लिए आएगा जब वह तुम्हारे दर्शन करेगा तभी उसे मेरी दर्शन का फल प्राप्त होगा।

बता दें कि वैष्णो देवी का पवित्र मंदिर त्रिकुटा पर्वत पर एक सुंदर, प्राचीन गुफा में है। जिसे वैष्णो माता के रूप में जाना जाता है। जिन्हें देवी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का अवतार माना जाता है। भारत के बाकी पवित्र स्थलों के साथ वैष्णो देवी का स्थल भी काफी पवित्र माना जाता है।

माता का बुलावा

ऐसा माना जाता है जब तक माता नहीं चाहती तब तक उनके दर्शन कोई नहीं कर सकता है। माता के बुलावे को उनका आशीर्वाद माना जाता है. जिसके चलते लोग हर तरह के लोग चाहे वे बुद्धिमान या अज्ञानी हो, पुरुष या महिला हो, बड़े या छोटे हो. सब उनके बुलावे का इंतजार करते हैं।

माता की यात्रा

माता के दर्शन करने की यात्रा लगभग 24 किलोमीटर लंबी हैं। जो कि एक कठिन यात्रा मानी जाती है। धर्मस्थल की यात्रा कटरा में बान गंगा से शुरू होती है। ऐसा माना जाता है कि वैष्णो माता ने कई शताब्दियों पहले अपने दिव्य धनुष से एक तीर चलाया था। ट्रेक कठिन है, लेकिन श्राइन बोर्ड की ओर से दिए जाने वाले ढके रास्ते, सीढ़ी, वाटर कूलर, बैठने की जगह, पेंट्री और भोजन की दुकानें थके हुए यात्रियों के लिए एक राहत देती है।

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