हिमाचल :(हिमदर्शन समाचार); बाबा बालकनाथ जी हिन्दूओं के पूज्य देवता हैं और इनकी पूजा पूरे उतर-भारत में की जाती हैं। इनकी पूजा विशेषकर हिमाचल प्रदेश, पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों में बड़ी श्रद्धा से की जाती हैं। बाबा बालकनाथ जी के पूजा के स्थान को “दयोटसिद्ध” भी कहा जाता है। इन भगवान का मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के चकमोह की पहाड़ी पर बना हुआ है और ये जगह हमीरपुर जिले में आती है। बाबा का ये मंदिर पहाड़ी पर है और इस मंदिर में एक गुफा भी हैं। इस गुफा के साथ जुड़ी मान्यता है कि ये गुफा बाबा जी का निवास स्थान है और इस गुफा में बाबा जी की एक मूर्ति है। जहां बाबा जी के भक्त बाबा जी की वेदी में “रोट” चढ़ाते हैं।
बाबा को क्या चढ़ाया जाता
‘रोट’ एक आटे से बनने वाली चीज हैं और इसे बनाने के लिए गुड और घी का भी इस्तेमाल किया जाता है और ये भगवान को चढ़ाया जाता है। बाबा जी को भक्तों द्वारा बकरा भी चढ़ाया जाता है, जो कि उनके प्यार को दर्शाता हैं। मंदिर में बकरों का अच्छी तरह पालन पोषण होता हैं। वहीं अगर आपको लग रहा है कि इनकी बलि दी जाती हैं तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। बाबा जी की गुफा में औरतों के जाने पर रोक हैं, लेकिन महिलाओं को दर्शन करवाने की सुविधा के लिए गुफा के ठीक सामने एक ऊँचा चबूतरा बनाया है जहां से महिलाएं बाबा जी को दूर ही देख सकती हैं। बाबा जी मंदिर से 6 किलोमीटर दूर एक स्थान है जो कि “शाहतलाई” है, और ऐसा माना जाता है, कि इसी जगह बाबा जी ध्यान किया करते थे। लोगों का मानना हैं कि भक्त जो भी इच्छा लेकर बाबा जी के पास आते हैं बाबा जी उसे जरूर पूरा करते हैं। इसलिए देश-विदेश से भक्त बाबा जी के मंदिर दर्शनों के लिए आते हैं।
बाबा बालकनाथ जी की कथा
बाबा बालक नाथ को हिन्दू धर्म में भगवान शिव का रूप माना गया है। बाबा बालकनाथ जी के लिए कहा जाता हैं कि इनका जन्म प्रत्येक युग में होगा। लोगों की यह मान्यता हैं कि बाबा बालकनाथ जी जब 3 साल के थे, तो ये अपना घर छोड़ कर हिमाचल प्रदेश आ गए थे और इस राज्य के बिलासपुर के शाहतलाई नामक स्थान पर रहने लगे थे। शाहतलाई में बाबा जी की मुलाकात एक महिला से हुई जिनका नाम माई रतनो था और उनकी कोई संतान नहीं थी। माई रतनो ने बाबा जी को ही अपना पुत्र मान लिया और कहा जाता है कि बाबा जी ने 12 सालों तक इनके यहां गाय चराईं थी।
देखा था चमत्कार
12 साल बाद एक दिन माई रतनो के बालक को ताना मार दिया था जिसके बाद इन्होंने अपने चमत्कार से 12 साल की लस्सी व रोटियां एक पल में इनको वापस कर दी थी। जब इस चमत्कार की खबर आस-पास के क्षेत्रों में फैली तो ऋषि-मुनि और कई लोग बाबा जी के चमत्कार से बहुत प्रभावित हुए वहीं गुरु गोरख नाथ जी को छोटे से बालक की शक्ति का पता चला, तो गोरख नाथ जी ने बाबा बालकनाथ जी को अपना चेला बनाने की कोशिश की मगर बाबा जी ने मना कर दिया इस बात पर गोरखनाथ जी बहुत गुस्सा हुए और जब गोरखनाथ जी ने बाबों को चेला बनाने की कोशिश की तो बाबा जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पर चले गए। जहां पर बाबा बालक नाथ जी की पवित्र गुफा स्थित और इस जगह पर आज लोग बाबा जी के दर्शनों के लिए आते हैं। मंदिर में बाबा जी का एक अखंड धूणा भी हैं, जिसे बाबा जी का तेज स्थल कहा जाता हैं। धूणा मंदिर के मुख्य गेट के पास ही है जो भक्तों की श्रध्दा का केंद्र हैं। और धूणे के पास एक पुराना चिमटा भी है, जो कि कहा जाता है कि बाबा जी का हैं।
लोगों की मान्यता है कि भक्त मन में जो भी इच्छा लेकर जाए वह अवश्य पूरी होती है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं इसलिए देश-विदेश व दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी के मंदिर में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। हिमाचल प्रदेश में अनेकों धर्मस्थल प्रतिष्ठित हैं, जिनमें बाबा बालक नाथ धाम दियोट सिद्ध उत्तरी भारत में एक दिव्य सिद्ध पीठ है। यह स्थान हमीरपुर और बिलासपुर जिला की सीमा पर चकमोह गाँव के दियोटसिद्ध नामक क्षेत्र में स्थित है । इसका प्रबंध हिमाचल सरकार के अधीन है।
उपयुक्त समय: इस पवित्र स्थान पर वर्ष के दौरान कभी भी आसानी से जाया जा सकता है। रविवार को बाबा जी के शुभ दिन के रूप में माना जाता है, इसलिए आम तौर पर सप्ताहांत पर और विशेष रूप से रविवार को यहाँ पर बहुत भीड़ होती है। हर साल यहां पर 14 मार्च से 13 अप्रैल तक चैत्र मास के मेले लगते हैं । इस दौरान यहाँ पर भारी संख्या में श्रद्धालु पधारते हैं |
व्यबस्था : सिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध की देखरेख “हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्था और चैरिटेबल एंडॉमेंट्स एक्ट, 1984” के तहत स्थापित मंदिर प्रशासन द्वारा की जाती है जिसकी अध्यक्षता उपायुक्त-एवं-मंदिर आयुक्त करते हैं |