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हिमाचल | मंडी

नही छोड़ा होसला, न्याय पाने के लिए लग गया 10 वर्ष का लंबा अर्सा, आखिर परिवहन निदेशालय ने अश्वनी सैनी को जारी किया 0001 स्पेशल नम्बर, पढ़े पूरी खबर ..

April 01, 2022 09:37 AM

सुन्दरनगर के अश्वनी सैनी ने 2014 के उच्च न्यायलय आदेशो को लागू करवाने को पुनः 2020 में डाली थी याचिका, अफसर व राजशाही के चलते आमजन को समय पर नही मिल रहा हक, पढ़े विस्तार से..

मंडी : (हिमदर्शन समाचार); 2012 में नियम तो था पहले आओ पहले आओ लेकिन अफ़सर व राजशाही इतनी हावी हुई कि अपना हक व न्याय पाने के लिए सुन्दरनगर के अश्वनी सैनी को दस वर्ष की लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी।हैरानी की बात यह है कि 2014 में उच्च न्यायलय ने प्राथी के पक्ष में आदेश दे दिए थे लेकिन ब्यूरोक्रेट्स व राजनेता इतने प्रभावशाली थे कि आगामी आठ वर्ष तक कोर्ट के आदेश को भी ठेंगा दिखाते रहे और उच्च न्यायलय के आदेश लागू तक नही होने दिए गए। आखिर प्राथी ने 2020 में जब पुनः याचिका दायर की तो उच्च न्यायलय के दबाव के चलते अब प्राथी को न्याय मिल पाया। 

मामला 2012 का है जो कि उस समय परिवहन विभाग के पहले आओ पहले पाओ के नियम तहत पेड विशेष नम्बर से सबंधित था। जिसमे सुन्दरनगर के अश्वनी सैनी ने उस समय अपने नए खरीदे महिंद्रा एक्सयूवी 500 वाहन के लिए पेड नम्बर 0001 नम्बर पाने के लिए आरएलए मण्डी, देहरा व सुन्दरनगर से उक्त नम्बर की मांग की लेकिन नम्बर उपलब्ध होने के बावजूद इन्हें विशेष नम्बर नही दिया गया।जबकि प्रभावशाली व उच्च पहुच वाले व्यक्तियों को नम्बर दे दिए गए । जिससे आहत हो प्राथी ने मामले से सबंधित सभी एसडीएम सुंदरनगर, देहरा, मंडी, सचिव व निर्देशक परिवहन विभाग शिमला के खिलाफ 2013 में याचिका दायर की (सी.डब्लू.पी.9089) जिसका निपटारा करते हुए हाईकोर्ट के दो जजो की बेंच में शामिल न्यायधीष राजीव शर्मा और सुरेश्वर ठाकुर की अदालत ने परिवहन विभाग के सचिव गोपाल शर्मा (ट्रास्पोर्ट )को एच.पी.0001 नंबर जारी करने के आदेश 13 नवम्बर 2014 में जारी किए । लेकिन कई माह बीत जाने पर भी परिवहन विभाग ने नम्बर जारी नही किया। हालांकि इस दौरान नम्बर जारी करने को लाईसेंसिंग अथॉरिटी व विभाग के उच्च अधिकारियो से हाई कोर्ट के आदेशो का हवाला देते हुए कई वर्ष तक पत्राचार किया ।लेकिन विभाग ने नम्बर न देने के बजाए नई रजिस्ट्रेशन पॉलिसी बना डाली जिसमे 1 से 10 नम्बर सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित करते हुए नम्बर देने से इनकार कर दिया। आखिर अश्वनी ने पुनः 2020 में उच्च न्यायलय के समक्ष याचिका दायर की तदुपरांत कोर्ट के दबाव में परिवहन विभाग ने कैबनेट की अप्रूवल उपरांत अश्वनी को एच.पी. 33 एफ 0001 नम्बर जारी करने के आदेश एसडीएम मण्डी को जारी किए।

2015 में 1-10 नम्बर सरकारी वाहन को कर दिए थे आरक्षित

हाइकोर्ट के आदेशो के तहत सबंधित प्राथी को नम्बर जारी करने की बजाए परिवहन विभाग ने नई रजिस्टेशन पॉलिसी का प्रारूप 24 सितम्बर 2015 को तैयार कर डाला।जिसमे निजी वाहनों के लिए 1से 10 वीआई पी नम्बर अलाट करने पर ही पाबन्दी लगाते हुए इसे मात्र सरकारी वाहनों के लिए आरक्षित रख लिया लेकिन इसकी अधिसूचना जारी करने उपरांत आक्षेप/सुझाव दिए जाने पर सरकारी वाहन के लिए रजिस्ट्रीकरण फीस 1 लाख कर दी गई। इससे पूर्व यह नम्बर आम जनता के लिए 75-50 हजार में पहले आओ पहले पाओ आधार पर उपलब्ध थे। यदि एक ही ऐच्छिक नंबर के लिए दो या उससे ज्यादा आवेदन एक समय में आ जाते थे तो उक्त नंबर की बोली लगाए जाने का प्रावधान था। वही यदि किसी अधिकारी को सरकारी वाहन के लिए उक्त वीआई पी नंबर चाहिए तो ऐसे में नंबर की पब्लिक मांग ना होने की सूरत में इसे मुफत में ही सरकारी वाहन को दिए जाने का भी प्रावधान था। लेकिन जनता को 1-10 नम्बर अलॉट ना किए जाने के चलते प्रदेश में सैकड़ों सिंगल डिजिट नम्बर बेकार हो गए।

राजनीतिक लोगो व प्रसासनिक अधिकारियो के पास है अधिकतर वी.वी.आई.पी नंबर, मंडी उपयुक्त के नाम पर चार वाहनो को है 0001 नंबर

परिवहन विभाग में फस्र्ट कम फस्र्ट सर्व की नीति होने के बावजूद प्रदेश मे वी.वी.आई.पी नंबरो के चाहवान आम नागरिको को नंबर नही मिल पाते है। इसका बड़ा कारण है राजनैनिक हस्तपेक्ष व अफसरशाही । प्रदेश में उपमंडल से लेकर राज्य स्तर के उच्चअधिकारियो का नंबर प्रेम के चलते नियमो को ठेंगा दिखा कर मुफत में करोड़ो के वीवीआईपी नंबरो पर डाका डाला गया है। आर.टी.आई के तहत हुए एक ऐसे ही खुलासे में सुंदरनगर उपमंडल में 2003 में जारी हुए पेड एच.पी.31 बी 0001 नंबर को अधिकारियो ने वर्षो दबाए रखने के बाद इसे वर्ष 2009 में उपायुक्त मंडी ने मुफत में महिंद्रा जाईलो वाहन पर अलाट करवाया । इतना ही नही उपायुकत के नाम से एच.पी.33 0001 एच.पी.30 0001व एच.पी.32 0001सहित अन्य वीआईपी नंबर लगे वाहन भी अलॉट हुए है। यंहा बता दे कि लंबे समय से अधिकारियो व सतासीन राजनेताओ का ही ऐसे वी.वी.आई.पी नंबरो पर कब्जा रहा हे। इनके ईशारे पर ही सीरीज जारी होती थी और स्पैशल नंबर पहले ही चहेतो के लिए बुक होते थे।

अब सरकारी वाहनों के लिए रिजर्व है 0001 नम्बर

2015 में लगी रोक जनता की मांग पर 2018 में 2-10 नम्बर पब्लिक के लिए जारी करने की अधिसूचना जारी हुई।लेकिन पुन 1 नम्बर सरकारी वाहन के लिए आरक्षित कर लिया गया।जो कि अभी सरकारी वाहनों के लिए 1 लाख कीमत में आरक्षित है।

अब मोजुदा नई पालिसी के तहत 2 से 10 नम्बर के लिए 75 हजार रिजर्व प्राइस है। 0011 से 0100 तक के ऐच्छिक नंबर के लिए 50 हजार , जबकि 0101 से लेकर 999 तक विशिष्ट नम्बरो के लिए 15 हजार व 1000 से 9999 तक बीच के विशिष्ट नंबरो के लिए 10 हजार फीस निर्धारित है।इसके अलावा अन्य मांग अनुसार नम्बर के लिए पांच हजार फीस है।यह सभी नंबर पहले आओ पहले पाओ के आधार पर आम-खास को दिए जाने का प्रावधान है।

करोड़ के नम्बरो पर कुंडली मारे बैठे है ब्यूरोक्रेट्स, वीवीआईपी ठसक से प्रदेश को नही आ रहा राजस्व

सरकारी वाहनों पर 0001 का पहले मुफ़्त में था प्रावधान अब पेड होने पर भी ब्यूरोक्रेट्स नम्बर इकठ्ठे करने में जुटे हुए है। प्रदेश भर में उपायुक्त कार्यलयों के काफिलों में अधिकतर वाहनों में वीवीआईपी नम्बर 0001 नम्बर लगे हुए है। बावजूद इसके अन्य वाहनों के लिए भी यही नम्बर ब्यूरोक्रेट्स की चाह बरकरार है। वही विभागों व बोर्डो के डायरेक्टर व चैयरमेन भी ठसक में पीछे नही है। प्रदेश भर में जिला मुख्यालयो में स्थित उपायुक्त कार्यालयों में अनेक वीवीआईपी नम्बर युक्त वाहन पहले से ही मौजूद है बावजूद इसके अधिकारी अब पेड नम्बर होने पर भी वीआईपी नम्बरो को अन्य वाहनों के लिए जुटाने में लगे हुए है।

उपायुक्त कांगड़ा द्वारा एच.पी-88 0001 नम्बर 6 मार्च 2017 को एक लाख खर्च लिया गया उसके बाद एक अन्य नए खरीदे एक्सयूवी वाहन को वीआईपी नंबर एचपी 40डी 0001 के लिए फिर से एक लाख खर्च किया गया । यह वाहन 17 जुलाई 2017 को एसडीएम कार्यालय कांगड़ा में रजिस्टर्ड हुआ था।यहा बता दे कि उपायुक्त कार्यालय में एचपी 56-0003 सहित अनेक वाहनों पर वीवीआईपी नंबर मौजूद हैं। वही उपयुक्त कुल्लू द्वारा भी वीआईपी नम्बर एच पी 35 सी 0004 नम्बर के लिए 1 लाख रूपए खर्च किया गया है। यह वाहन पच्चीस अगस्त 2017 को जिला दण्डाधिकारी कुल्लू के नाम से रजिस्टर्ड हुआ है।

उपयुक्त शिमला (ग्रामीण) एच.पी 52 सी 0001 द्वारा भी एक लाख फुके गए। वही विभिन्न विभागों के डायरेक्टर व चेयरमैन भी सरकारी वाहनों पर लाखो खर्च कर 0001 नम्बर की ठसक पूरा करने में लगे हुए है। आरटीआई से प्राप्त जानकारी अनुसार सरकारी खजाने से एक-एक लाख रूपए खर्च कर डायरेक्टर हॉर्टिकल्चर ने एचपी 63 डी 0001 दिसम्बर 7, 2016 को रजिस्टर्ड करवाया ।हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने चैयरमेन के लिए 12 मई 2016 को एसटीए शिमला से वीवीआईपी नम्बर एच पी 62 डी 0005 की रजिस्ट्रेशन करवाई । हाल ही में हिमाचल प्रदेश शिक्षा बोर्ड धर्मशाला बोर्ड के चैयरमैन मण्डलायुक्त काँगड़ा राजीव शंकर और हरीश गज्जू बोर्ड के सचिव द्वारा 34 लाख में खरीदे नए7 फॉर्च्यूनर वाहन के लिए अप्रैल 2018 में एचपी 37 ई 0001 वीवीआईपी नम्बर 1 लाख का खरीदा गया ।

उपायुक्त कांगड़ा ने एक लाख एच.पी-88 0001नम्बर उस समय उधारी के पैसे से खरीदा । इसके लिए बकायदा रजिस्ट्रेशन कार्यलय कांगड़ा ने एक लाख उधारी कर दी हालाकि रजिस्ट्रेशन कार्यलय में वाहन पंजीकरण का आनलाईन सिस्टम है और निर्धारित फीस के लिए उधारी का कोई प्रावधान नही होता है।लेकिन 6 मार्च 2017 को उपमंडलाधिकारी (ना.) जिला कांगड़ा कार्यालय में यह नम्बर रजिस्टर करवाया गया और उक्त नंबर की उस समय एक लाख रुपए फीस अदा नहीं की गई ।

न्यायलय में 2020 से लंबित मामले में परिवहन सचिवालय व निदेशालय से एची. पी 33 एफ 0001 नम्बर अश्वनी सैनी को आबंटित करने निर्देश प्राप्त हुए है। इस सबन्ध में एनआईसी को वाहन पोर्टल में प्रावधान करने को कहा गया है। शीघ्र ही नम्बर अलॉट हो जाएगा।

-रितिका जिंदल , एसडीएम मंडी

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