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धर्म/संस्कृति

विश्कर्मा जयन्ती विशेष: हनुमान जी ने लंका को ही पहला निशाना क्यों बनाया? किसने किया इंद्रलोक, पाताललोक, स्वर्ग लोक और लंका का निर्माण। यहाँ जानिए भगवान विश्वकर्मा से जुड़ी हर जानकारी

September 17, 2019 10:18 AM

शिमला : ( हिमदर्शन धर्म); सनातम धर्म में विश्वकर्मा भगवान को निर्माण और सृजन का देवता कहा जाता है। उन्हें दुनिया का पहला इंजीनियर भी बोलते हैं। ये भी कहा जाता है कि अगर विश्वकर्मा जयंती के दिन कारोबारी और व्यवसायी भगवान विश्वकर्मा की पूजा-अर्चना करते हैं, तो उनको तरक्की मिलती है। इसी वजह से विश्वकर्मा जयंती के दिन मशीनों की भी पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा से जुड़ीं ये तो हुईं वो बातें, जो शायद लगभग हर किसी को पता हैं, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि सोने की लंका और स्वर्गलोक को भी निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।

 विश्वकर्मा जयंती आज

विश्वकर्मा भगवान से जुड़ी ऐसी ही रोचक जानकारी हम आज आपको बताने जा रहे हैं। भगवान विश्वकर्मा विश्व में संरचनात्मक कार्यों के देव माने जाते हैं। 17 सितंबर यानी आज विश्वकर्मा जयंती है और इस दिन समस्त उपकरणों की पूजा के साथ कारखानों में इनकी पूजा की परंपरा है। तकनीकी कार्यों में इनका आशीर्वाद बहुत जरूरी होता है। इन्हें देवलोक के शिल्पकार तथा वास्तु शास्त्र के प्रणेता भी करते हैं।

विश्वकर्मा भगवान ब्रह्मा जी के वंशज हैं। इनके ज्ञान को समझने के लिए सरस्वती एवं विश्वकर्मा जी के क्षेत्र को अलग-अलग समझना जरूरी है। सरस्वती जी विद्या एवं संगीत की देवी है और विश्वकर्मा जी तकनीक पक्ष के देवता है। उदाहरण के तौर पर समझें तो जैसे आपने बीटेक का ज्ञान लिया सरस्वती की कृपा से और नौकरी में सफल इंजीनियर बने विश्वकर्मा जी की कृपा से।

हिन्दू धर्मशास्त्रों में तो यह भी वर्णन मिलता है कि देवासुर संग्राम में राक्षसों का वध करने के लिए शक्ति स्वरूप दुर्गा जी के अस्त्र-शस्त्र- जिसमें त्रिशूल, फरसा, गदा आदि का निर्माण भी स्वयं विश्वकर्मा जी ने ही किया था। कुछ ऋषियों ने उनसे कहा कि वास्तुशास्त्र तो देव विद्या है, इसे मानव जाति को क्यों दिया जाए। तो स्वयं विश्वकर्मा जी ने कहा कि यह विद्या मानवों को अवश्य देनी चाहिए, ताकि उनका जीवन शांतिमय एवं सुखमय हो तथा यह विद्या लुप्त भी न हो।  इसका यह अर्थ है कि विश्वकर्मा जी इतने कल्याणकारी देवता हैं कि दूसरों की सुख-सुविधा, संतुष्टि, शांति एवं रक्षा के लिए ही कार्य करते हैं। पूर्ण रूप से उनमें सकारात्मक ऊर्जा है।

किसे वास्तुशास्त्र करते हैं?

विश्वकर्मा जी सदैव आध्यात्मिक और भौतिक उत्थान के लिए ही कार्य करते हैं। सबसे खास बात यह है कि यह देवताओं के पक्षधर रहे हैं, न की असुरों के। यानी असुरी प्रवृत्ति के विरोधी हैं। दैवीय वास्तु, पंच तत्वों ( अग्नि, जल, पृथ्वी, वायु एवं आकाश), तीनों बलों (गुरुत्व, चुम्बकीय और सौर ऊर्जा) अष्टदिशाओं, ग्रहों, नक्षत्रों की गति पर आधारित एक सुपर साइंस हैं। प्रकृति के इन कारकों के अनुरूप आवास का निर्माण करना, जिससे इन शक्तियों को भवन में संतुलित व व्यवस्थित रखकर जीवन को सुखमय बनाया जा सके, इसी विज्ञान को वास्तुशास्त्र कहते हैं।

विश्वकर्मा भगवान ने किया था लंका का निर्माण

वो विश्वकर्मा जी ने थे, जिन्होंने लंका का महादेव के लिए निर्माण किया था। जिसको रावण ने भगवान शिव से प्राप्त किया था। रावण की अथाह शक्तियों और वैभव के पीछे लंका की भी बहुत अहम भूमिका थी। हनुमान जी का लंका दहन करने का कारण ही यही था कि रावण का वास्तु डिस्टर्ब हो जाए। वहीं, महाभारत काल में जब पांडवों ने इंद्रप्रस्थ को अपनी नई राजधानी बनाया था, तब श्री कृष्ण ने विश्वकर्मा जी से इसके निर्माण हेतु आग्रह किया था, लेकिन श्रीकृष्ण के कुछ सुझाव विश्वकर्मा जी को वास्तु सम्मत नहीं लगे। तो उन्होंने इसका निर्माण करने से मना कर दिया। उपरोक्त दोनों उदाहरण विश्वकर्मा जी की महानता और सैद्धांतिकता को दर्शाता है। यदि चीजें वास्तु सम्मत नहीं है, तो वह नारायण को भी मना करने में नहीं हिचकते हैं, क्योंकि वह पूर्ण रूप से सकारात्मक देवता है।

इंद्रलोक, स्वर्ग लोग, पालातलोक सबको किया डिजाइन

विश्वकर्मा जी ने भूलोक में आकर राजमहलों से लेकर आम घरों का डिजाइन तैयार किया है। विश्वकर्मा को ही सर्वप्रथम सृष्टि निर्माण में वास्तुकर्म करने वाला कहा जाता है। इन्द्रलोक, स्वर्ग लोक सहित भूलोक और पाताललोक के राजमहलों से लेकर प्राचीनतम मन्दिर, देवालय, नगर तथा ग्रामीण आवासो के निर्माता विश्वकर्मा को ही कहा जाता है। आज प्रत्येक शिल्पी, मिस़्त्री राज, बढई , कारीगर तथा अभियंता आदि जितने टेक्निकल लोग हैं और जितनी टेक्निकल वस्तुएं हैं सब विश्वकर्मा जी के अधीन है। यानी टेक्निकल एवं आर्किटेक्ट के सर्वज्ञाता है विश्वकर्मा जी।

विश्वकर्मा भगवान के अनेक रूप

भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु, कहीं चार बाहु एवं कहीं0कहीं पर दश बाहु तथा एक मुख, कहीं चार मुख एवं कहीं पर पंचमुख।

कैसे प्रसन्न करें विश्वकर्मा भगवान को और कैसे मनाएं विश्वकर्मा जयंती

विश्वकर्मा जी की उपासना में परंपरागत तरीकों का पालन करना अनिवार्य है। इस दिन उनकी उपासना होती है। साथ ही, औजारों की पूजा होती है। कारखाने, फैक्ट्री, उद्योग बंद रहते हैं।

वास्तु शिल्पियों, हार्डवेयर का काम करने वाला, इलेक्ट्रीशियन, मैकेनिक आदि का सम्मान करना चाहिए। यदि यह आपसे खुश हैं तो समझ लीजिए कि विश्वकर्मा जी खुश हैं।

घरों में जो भी यंत्रिकीय वस्तुये जैसे टूल बॉक्स आदि को भी निकाल कर सम्मान के साथ उनकी पूजा करनी चाहिए ताकि इनका प्रयोग सदैव सफल रहें।

कोई भी घर बनवाते समय पूजा करते ही हैं साथ में शिल्पकार को भी तिलक करते हुए उसका सम्मान करना चाहिए और उसको दक्षिणा भी देनी चाहिए।

जब नए मकान या फैक्ट्री का उदघाटन करते हैं तो उसके शिल्पाकारों और आर्किटेक्ट को भी आमंत्रित करके सार्वजनिक रूप से सम्मानित करना चाहिए।

 

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